लिए फिरते हैं। हम लड़कियों के पास तो और रास्ते हैं। फिर भी हम भेदभाव का झंडा लिए फिरते हैं। दर्द उन मर्दों के सीने का देखो। दर्द उन मर्दों के सीने का देखो? जिनकी? जिंदगी जिम्मेदारियों के बोझ तले ही दब जाने। ये हमारी सोसाइटी की बहुत सार रियलिटी है। या तो लड़कियों में इतनी कमियां ढूंढेंगे? या तो उन्हें इतनी बेड़ियों में जकड देंगे कि वो ये सोचे कि काश वह लड़का होती। लेकिन जब बात लड़कों की आती है तो उन्हें भी कोई भगवान नहीं। ना।