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@ivgaur · 5:00

मेरी पहली रचना - प्रेमचंद

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with all due respect in credit to the original wit ग्रेट लेजर मुंशी प्रेम चंद जी जिन्होंने उर्दू के साथ शुरुआत करी अपने शुरुआती दिनों में फिर हिंदी में काफी कहानियां लिखी, कविताएं भी लिखी और कहानियां भी लिखी लेकिन अंतत कहानियां अधिक लिखें ज्यादा लिखे तो उनकी कफन शीर्षक की किताब में उनकी 1 रचना है कफन खुद में 1 कहानी है और उनकी किताब का या कविताओं का या कहानियों का संग्रह होता है तो उसमें किसी भी 1 कविता या कहानी के शीर्षक को पूरी किताब का उस पूरे संग्रह का शीर्षक रख दिया जाता है तो कफन 1 कहानी है लेकिन जो उन्होंने उस किताब में जिसका कफन शीर्षक रखा गया लिखा है वो केवल कफन नहीं उसमें कई कहानियां हैं जैसे जैफरी जाने वाले शॉर्ट स्टोरी टेलर हैं शॉर्ट स्टोरीज लिखते हैं कि बुक में काफी स्टोरीज हो जाती है इस तरह से उन्होंने कफन में 1 कहानी लिखी जिसका शीर्षक है मेरी पहली रचना उसमें मुंशी जी लिखते हैं उस वक्त मेरी उम्र कोई 13 साल की रही होगी हिंदी बिल्कुल न जानता था उर्दू के उपन्यास पढ़ने लिखने का उन्माद था मौलाना पंडित रतननाथ सरशार मिर्जा रुसवा मौलवी मुहम्मद अली हरदोई निवासी उस वक्त के सर्वप्रिय उपन्यास कार थे उनकी रचनाएं जहां मिल जाती, स्कूल को स्कूल की याद भूल जाती और पुस्तक समाप्त करके ही दम ले तथा उस जमाने में रेनाल्ड के उपन्यासों की धूम थी उर्दू में उनके अनुवाद धड़ाधड़ निकल रहे थे और हाथों हाथ बिकते थे मैं भी उनका आशिक था हजरत रियाज ने जो उर्दू के प्रसिद्ध कवि थे और जिनका हाल में देहांत हुआ है रेनाल्ड की 1 रचना का अनुवाद हरम सरा के नाम से किया था उस जमाने में लखनऊ के साप्ताहिक अवध पंच के संपादक स्वयं मौलाना सज्जाद हुसैन ने जो हास्यरस के अमर कलाकार हैं रेनाल्ड के दूसरे पन्यास का अनुवाद धोखा या तिलस्मी फानुस के नाम से किया था ये सारी पुस्तकें मैंने उसी जमाने में पढ़ी और पंडित रतननाथ सरशार से तो मुझे तृप्ति न होती थी उनकी सारी रचनाएं मैंने पढ़ डालीं उन दिनों मेरे पिता गोरखपुर में रहते थे और मैं भी गोरखपुर के ही 1 मिशन स्कूल में आठवीं में पढ़ता था जो तीसरा दर्जा कहलाता था रेती पर 1 बुकसेलर बुद्धिलाल नाम का रहता था मैं उनकी दुकान पर जा बैठता और उसके स्टॉक से उपन्यास लेकर पढ़ता था मगर दुकान पर सारे दिन तो बैठ नहीं सकता था इसलिए मैं उनकी दुकान से अंग्रेजी पुस्तकों की कुंजियां और नोट्स लेकर अपने स्कूल के लड़कों के हाथ बेचा करता था और इसके मुआवजे में दुकान से उपन्यास घर लाकर पढ़ता था 23 वर्षों में मैंने सेकेंडो में ही उपन्यास पर डाले होंगे जब उपन्यासों का स्टाक समाप्त हो गया तो मैंने नवल किशोर प्रेस से निकले हुए पुराणों के उर्दू अनुवाद भी पढ़े और तिलस्मी है श्रुवा के कई भाग भी पढ़े इस वृहद तिलस्मी ग्रंथ के 17 भाग उस वक्त निकल चुके थे और 11 भाग बड़े सुपर रॉयल के आकार के 2 2000 पृष्ठों के उनसे क* न रहे होंगे और इन 17 भाग भागों के उपरांत उसी पुस्तक के अलग अलग प्रसंगों पर पच्चीसों भाग छप चुके थे। इनमें से भी मैंने पढ़े जिसने इतने बड़े ग्रंथ की रचना की, उसी कल्पनाशक्ति को सोचते हुए यह जहन में आता था कि कितनी प्रबल रही होगी वो कल्पना शक्ति।

कफ़न

@ivgaur
अजनबी Anonymous
@ivgaur · 4:40
तो कितनी प्रबल रही होगी ये रचना की कल्पनाशक्ति इसका केवल अनुमान ही किया जा सकता है। कहते हैं ये कथाएं मौलाना फैजी ने अकबर के विनोदार्थ फारसी में लिखी थी। इसमें कितना सत्य है कह नहीं सकता। लेकिन इतनी बेहद कथा शायद इस संसार की किसी भाषा में होंगी। पूरी इनसाइक्लोपीडिया समझ लीजिए। 1 आदमी तो अपने 60 वर्ष के जीवन में उनकी नकल भी करना चाहे तो नहीं कर सकता। रचना करना तो दूसरी बात है। उसी जमाने में मेरे 1 नाते के मामू कभी कभी हमारे यहां आया करते थे।
@ivgaur
अजनबी Anonymous
@ivgaur · 4:56
दूसरे दिन शाम को जब चंपा मामू साहब के घर में आई तो उन्होंने अंदर का द्वार बंद कर दिया महीनों के असमंजस और हिचक और धार्मिक संघर्ष के बाद आज मामू साहब ने अपने प्रेम को व्यावहारिक रूप देने का निश्चय किया था चाहे कुछ हो जाए कुल मर्यादा रह जाए बाप दादा का नाम डूबे या उतर आया उधर 1 जत्था ताक में था ही इधर किवाड़ बंद हुए उधर उन्होंने द्वार खटखटाना शुरू कर दिया पहले तो मामू साहब ने समझा कोई आसामी मिलने आया होगा किवाड़ बंद पाकर लौट जाएगा लेकिन जब आदमियों का शोरगुल सुना तो घबराए जाकर किवाड़ों के दराज से झांका कोई 20 25 आदमी लाठियां लिए द्वार पर खड़े किवाड़ों को तोडने की चेष्टा कर रहे थे अब करें तो क्या करें भागने का कहीं रास्ता नहीं चंपा को कहीं छिपा नहीं सकते समझ गई कि शामत आ गई आशिकी इतनी जल्दी गुल खिलाएगी यह तो क्या जानते थे नहीं इस स्त्री पर दिल को आने ही क्यों देते उधर चंपा इन्हीं को कोस रही थी तुम्हारा क्या बिगड़ेगा मेरी तो इज्जत लुट गई घर वाले मूड ही काट कर छोडेंगे कहती थी कभी किवाड़ बंद न करो हाथ पांव जोड़ती थी मगर तुम्हारे सिर पर तो भूत सवार था लगी मुँह में कालिक कि नहीं मामू साहब बेचारे इस कूचे में कभी न आये थे कोई पक्का खिलाड़ी होता तो सौ उपाय निकाल लेता लेकिन मामू साहब को तो जैसे सिट्टी पिट्टी भूल गई थी बरोट में थरथर कांपते हुए मान चालीसा का पाठ करते हुए खड़े हुए थे और कुछ न सूझता था और उधर द्वार पर कोलाहल बढ़ता जा रहा था यहाँ तक कि सारा गांव जमा हो गया बामन, ठाकुर, कायत सभी तमाशा देखने लगे और हाथ की खुजली मिटाने के लिए आ पहुंचे इससे ज्यादा मनोरंजक और स्फूर्ति वर्धक तमाशा और क्या होगा कि 1 मर्द 1 औरत के साथ घर में बंद पाया जाए फिर वह चाहे कितना ही प्रतिष्ठित और विनम्र क्यों न हो, जनता उसे किसी तरह क्षमा नहीं करती बड़े ही बुलाया गया किवाड़ फाड़े गए और मामू साहब भूसे की कोठरी में छिपे हुए मिले चंपा आंगन में खड़ी रो रही थी द्वार खुलते ही भागी कोई उससे नहीं बोला मामू साहब भागकर कहां जाते हैं वो जनता के सामने थे और वो जानते थे कि उनके लिए भागने का रास्ता नहीं है मगर फिर क्या हुआ मार खाने के लिए तैयार बैठे थे मार पड़ने लगी और बेभाव की पड़ने लगी जिसके हाथ जो कुछ लगा जूता छड़ी छाता लात घूंसा अस्त्र चले यहां तक मामू साहब बेहोश हो गए और लोगों ने उन्हें मुर्दा समझ कर छोड़ दिया अब इतनी दुर्गति के बाद वह बच भी गए तो गांव में नहीं रह सकते थे और उनकी जमीन पट्टीदारों के हाथ आएगी इस दुर्घटना की खबर उडतेवुरतेहमारे यहाँ भी पहुंची मैंने भी उसका खूब आनंद उठाया पिटते समय उनकी रूप रेखा कैसी रही होगी इसकी कल्पना भी की और उस पर खूब हंसी भी आई 1 महीने तक तो वह हल्दी और गुड़ पीते रहे जो ही चलने पढने लायक हुए हमारे यहां आये यहाँ अपने गांव वालों पर डाके का इस्तगासा दायर करना चाहते थे अगर उन्होंने कुछ दीनता दिखाई होती तो शायद मुझे हमदर्दी हो जाती लेकिन उनका वही दमखम था मुझे खेलते या उपन्यास पढ़ते देखकर बिगड़ना और रोब जमाना और पिताजी से शिकायत करने की धमकी देना यह अब मैं क्यों सहने लगा था अब तो मेरे पास उन्हें नीचा दिखाने के लिए काफी मसाला था आखिर 1 दिन मैंने यह सारी दुर्घटना 1 नाटक के रूप में लिख डाली और अपने मित्रों को सुनाई सब के सब खूब हसे मेरा साहस बढ़ा मैंने उसे साफ साफ लिखकर यह काफी मामू साहब के सिरहाने रख दी और स्कूल चला गया।
@Swell
Swell Team
@Swell · 0:15

Welcome to Swell!

@ivgaur
अजनबी Anonymous
@ivgaur · 3:15
स्कूल तो मैं चला गया दिल में कुछ डरता भी था, कुछ खुश भी था और कुछ घबराया हुआ भी था सबसे बड़ा कुतूहल यह था कि ड्रामा पढ़कर मामू साहब क्या कहते हैं स्कूल में जी न लगता था दिल उधर ही टंगा हुआ था छुट्टी होते ही घर चला गया मगर द्वार के समीप जाकर पांव रुक गए वह हुआ कहीं मामू साहब मुझे मार न बैठें लेकिन इतना जानता था कि वह 1 धाकड़ 1 थप्पड़ भी मारेंगे उससे ज्यादा मुझे मारना सकेंगे क्योंकि मैं मार खाने वाले लड़कों में न था मगर यह मामला क्या है मामू साहब चारपाई पर नहीं है जहाँ वनित लेटे हुए मिलते थे क्या घर चले गया आकर कमरा देखा वहां भी सन्नाटा मामू साहब के जूते कपड़े गठरी सब लापता अंदर जाकर पूछा मालूम हुआ मामू साहब किसी जरूरी काम से घर चले गए भोजन तक नहीं किया मैंने बाहर आकर सारा कमरा छान मारा मगर मेरा ड्रामा मेरी वह पहली रचना कहीं न मिली मालूम नहीं मामू साहब ने उसे चिराग गली के सुपुर्त कर दिया या अपने साथ स्वर्ग ले गए ये थी प्रेमचंद जी की पहली रचना की कहानी तो अक्सर कहानियां जो होती है हम उन्हें अनजाने में ही 1 रूप देते हैं शुरुआती दिनों में कभी कोई भी लेखक होता है तो उसको अनजाने में ही पता चलता है कि हां उसने कुछ लिखा है ऐसे कई अन्य लेखक भी हैं जिन्होंने पहली बार कुछ लिखा पहली दफा तो वो कई बार अनजाने में ही लिखा है अब मन कोई 1 आद लेखक रहा होगा जिन्होंने सोचकर की हां मैं रचना लेकर हूँ पहली रचना लिखी होगी क* से क* उसका आइडिया तो अनजाने में ही आया होगा सो दैट वज और थोड़ी कह सकते हैं कि एंचेंट टाइम के राइटर हैं तो उस समय देश में कई चीजें अलग थीं तो ऐसी कुछ चीजें भी वो लिख दिया करते थे जो आज की तारीख में जिसे टैबू कहा जाता है लेकिन किसी भी टैबू से डरना भयंकर ना दूर होना उसका इलाज नहीं है हमें हर चीज को फेस करके उसके हिसाब से अपने आप को मजबूत करना आना चाहिए thank you for listen story by an pramsontwasnotmy creation just reading his on स्टोरी थैंक यू।
@Priya_swell_
Priya kashyap
@Priya_swell_ · 0:20

@ivgaur

it was such a nice swell to be post it and i think we all have grown up by reading and by listing the stories of munshi premchan and i am also having a one or two stories return by him which i really like from my child out so thank you so much for posting this।
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