बडे इत्मिनान से मेरी हर बात सुनते हैं बडे इत्मिनान से मेरी हर बात सुनते है चंद दरख्त छाँव का कालीन बुनते हैं चंद दरख्त छाँव का कालीन बुनते हैं दरो दीवार पे कल मा ये नकाश देते हैं हवा में झूम के सूफी खुदा तलाश लेते हैं तन्हाई में ये अक्सर मुझे आवाज देते हैं परिंदे कैन में पनाह परवाज लेते हैं कभी फूलों कभी पत्ता 2 का हर 1 साज़ सुनते हैं बड़े मैनाम से मेरी हर बात सुनते हैं चंद दरख्त छाऊ का कालीन बुनते हैं छान के धूप का अमृत सांस में सांस भरते हैं छान के धूप का अमृत सांस में सांस भरते हैं काट कर फूंक 2 शाहिन कोई शिकवा न करते हैं काट कर फूंक 2 शाहिन कोई शिकवा न करते हैं गले लगा के तो देखो जब सुक** हो हासिल ये खुदा के फरिश्ते उसके सजदे में हैं शामिल तमाम पत्ते और शाही दुआ में खुलते हैं बड़े मिलान से मेरी हर बात सुनते हैं चंद दरख्त छाव कालीन बुनते हैं चंद दरख्त छाव का कालीन बुनते हैं।

#love #trees #prayer #joy #peace

0:00
0:00