अच्छा बेहोश होकर मेडिकल रूम जाने का सपना था। सपना तो सपना रह गया। लेकिन पीरियड छोड़ धूप देखने वाला ला भी तो अपना था। जिस स्कूल में कैचर्स में जाना। 1 शाम की बात लगती थी। आज उसी स्कूल की यूनिफॉर्म भी किसी शाही कपड़ो से कम नहीं लग रही थी। हाँ बोर्ड। क्लास में। मजे तो बहुत किए थे। दोस्तों के साथ। मिलकर भी। मगर। ऐसे स्कूल वाले। लॉयल फ्रेंड्स? जिंदगी भर। नहीं। मिलेंगे। ढूंढ कर भी। ये ट्वेल्थ। का? एंड?
Meri Lekhani
@munnaprajapati1 · 2:13
हमें हमारे हाल तक नहीं। पूछने में पहचानते भी? नहीं। तो काफी सैट फील होता है। लेकिन खैर क्या? करेंगे? दुनिया का दस्तूर यही है। जो छूट जाते हैं वो छूट ही जाते हैं। कुछ लोग होते हैं? जो याद रखते हैं? नहीं? तो अधिकतम लोग भूल गया? करते हैं। शुक्रिया।
Jagreeti sharma
@voicequeen · 0:41
आपकी को बहुत अच्छी लगी। आपकी को तो हर कोई विवेक कर? पायेगा? और आपने में पहुंचा गया था। आपकी। कविता की 11 लाइन अच्छी लगती है। जब स्कूल में होते हैं तो स्कूल छोड़ के जल्द कार्ड जलने की जल्दी होती है। स्कूल से छुटकारा ही वे हम कॉलेज पहुँचे। लेकिन आज जब हम सचमुच बड़े हो गए है तो स्कूल के दिनों को काफी याद करते हैं। त देखते रहियेगा और हम को सुना कर। रहिएगा। धन्यवाद।
वो। पी पी पी। रेड, को पनिशमेंट के टीचर्स से डाक? री मांग। और अपनी इस कविता से सब की याद दिलाई है। सच में। वो ले। अगर। मिले तो मैं दुबारा खेलना चाहूंगी। शुक्रिया।