@hrudayastha
Valmik Giri
@hrudayastha · 1:41

Bhul chuke tumhe hum

सभी दोस्तों को मेरा सादर प्रणाम 1 कविता पेश करना चाहता हो कि कविता का शिर्षक है शायद तुम नहीं जानती शायद तुम नहीं जानती हो हम तुम्हें कितना चाहते हैं कभी हम अपने आप से भी मिलते हैं तो तुम नजर आती हो मानो हर लम्हे में हम तुम तुम्हें ही पाते हैं तुम नहीं जानती हम तुम्हें कितना चाहते है यह तो बस कहने की बात है कि हम खुद से खुद में ही खुश है दरअसल हर खुशी के लामू में हम तुम्हें ही पाते हैं तुम नहीं जानती हम तुम्हें कितना चाहते हैं आज भी हम आईने में देखते हैं तो साथ में तुम्हारी हंसी ढूंढते हैं बाहर का तो ठीक है मगर हृदय के अंदर भी उसी हंसी को बार बार महसूस करते हैं तुम नहीं जानते हो हम तुम्हें कितना चाहते हैं रास्ते से गुजरते हैं तो पेड़ की छाँव में तुम्हें पाते हैं पंछियों की आवाज की मधुरता में तुम्हे सुनते हैं झरने के करीब से कभी गुजरते हैं तो उसके पानी में तुम्हारी पवित्रता को नजदीक से वापस देखते हैं तुम नहीं जानती हम तुम्हें कितना चाहते हैं आज भी हमें लगता है कि तुम वापस आओगी पता ही नहीं चला तुम्हारे इंतज़ार में न जाने कब हम बूढ़े हो गए आज भी तुम्हारे साथ होने का एहसास होता है गुजरा हुआ हर 1 पल फिर से जीवित होता है शायद तुम नहीं जानती हम तुम्हें कितना चाहते हैं यह बात हम नहीं भूले कि हम रोये ये तुम्हे पसंद नहीं इसकी वजह से न जाने कब हमारे आंसू सूख गए मानो कुछ इस तरह हम बदल गए की किसी के जनाजे पर भी हम चाहकर भी आंसू न बहा सके शायद तुम नहीं जानती हम तुम्हें कितना चाहते हैं शायद तुम नहीं जानती हम तुम्हें कितना चाहते है धन्यवाद।

Its a poem writtem by me

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