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@Deep_Sense · 4:50

छः फ़ेरे part -01

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इस कहानी का नाम है 6 फेरे दिवाली के लिए सुबह थी मैंने कितने साल बाद इतने इत्मिनान से पाया था रात भर माँ पापा से बात की थी चिटकी के ताने सहते और खुद को वचन दिया था कि दूसरे महीने आया करूंगा घर वालों से मिल याद शहर झूठा कहीं का मैं जानता था बड़े शहर जाते ही मैं फिर से घड़ी की सुई बन जाऊंगा जो रोज ही रास्ते पर बेमकसद बेमुरब्बत दौड़ती रहती है बिना रुके बिना सोचे समझे यह शायद बहुत ही सोची समझी जिंदगी जी रा मेरे जिंदगी मानो अपने आप को न जाने क्या समझती है जैसे की गणित हो मैथमेटिक फिजिक्स का कोई 1 इक्वेशन मैं ऐसी जिंदगी जीना नहीं चाहता था मैं चाहता था ऐसी जिंदगी है जिसमें दशहरे के मेले का शोर हो जिसमें 412 नंबर बस फिर से मिस कर देने की झंझलाहट हो जिसमें लोटे वाले की जलेबी की मिठास हो जिसमें गर्मी की दोपहर में उसका इंतजार का सन्नाटा हूँ जिसमें उसकी बे मतलब विसाख था बे परवा हसी की खनक हो लेकिन मेरी जिंदगी सिर्फ मैथ्स की एक्शन बन कर रह गयी थी नम्रता की शादी हो रही थी ने सालो खामोशी से बेवकूफी से उसको प्यार किया भूले शहर की मेरी वो पड़ोसन किसी और की शहर में किसी और की पड़ोसन बनने जा रही थी मैं जानता था मैं उसकी शादी में जाने की इम्मत नहीं जुटा पाऊँगा लेकिन 1 बार उसका चेहरा देखिये बिना शहर छोड़ने का दस्तूर भी तो नहीं है न मैंने माँ को आवाज देकर कहा माँ पराठे मत फेंको मैं आकर नाश्ता करूंगा 7 मिनट बाद मैं उसी पुरानी लकड़ी के दरवाजे के सामने नम्रता की दहलीज पर खड़ा था शास्त्रों में लिखा है कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को लेकिन वो शास्त्र को मानते कहाँ थे दरवाजा खोला स्वागत नाव भगत दुआ सलाम गुस्से के आँखों से बरसाने चालू कर दी है उसने बोली घडी ठीक करवा कर आने में 3 साल लगते हैं क्या यही तो कह कर गया था मैं बस अभी आया शहर से छोड़ रहा हूँ यह उसे बहुत वक्त तक बता ही नहीं पाया और जब बताया वो मुझसे छूट चुके थे कुछ भी तो नहीं बदला इस में जहाँ में शर्मिला आशिक अपने दिल की बात छुपा कितनी शामिल बिताता था ड्राइंग रूम में सामने नम्रता की डिबेटिंग की ट्राफी, अंकल के रिटायरमेंट के दिन की तस्वीरें, गुलदस्त में प्लास्टिक के फूल और न जाने क्या क्या था के सामने शुक्ला अंकल अंदर से आया है सब्जी का थाला लेकर शायद बाजार जा रहे थे बोले अरे तुम्हारी खैर नहीं है अब इतने दिन कहाँ थे इसका पूरा हिसाब अब थानेदार साहब को देना पड़ेगा अंकल के जाते ही मुझे लगा जैसे मैं और वो फिर कॉलेज में थे और हिस्ट्री की क्लास सातवें पन करने आये थे मैंने कहा सुना है शादी कर रही हो कांग्रेचुलेशन वो बोली प्याज के पकोड़े खाओगे मैंने उसकी आँखों में देखा और बोला तुम खुश हो ना वो कुछ पल खामोश रही फिर बोली तुमने कभी कह के तो देखा होता मैंने कहा कहना बहुत कुछ चाहा वो बोली तुम बस चाहते ही रह कुछ करना मत तुम्हारे साथ 6 फेरे लेने के बाद मैं पिछले 3 साल तक सोचती रही कि शायद तुम्हें आखिरी फिर याद आ जाएगा मैंने कहा 6 फेरे उसने कहा दूला काफी भुलक्कड़ है दोस्तों, यह कहानी 1 बड़ी ही सूरत कहानी है जिसमें 2 ऐसे लोग हैं आम जिंदगी के जो 1 दूसरे से बहुत मोहब्बत करते थे बीते दिनों में जिंदगी कश्मकश में कोई क*ाने निकल गया तो कोई घर संभाल ले और जो दूरियां बढ़ी वो फिर खत्म ही नहीं हुई पर आज दोनों इस मुकाम में थे कि शायद 1 दूसरे को अलविदा भी कहने में दोनों को वक्त लग रहा था इस कहानी को आगे सुनते रहने के लिए ज्वाइन करते रहियेगा।

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@Priya_swell_
Priya kashyap
@Priya_swell_ · 0:11

@deep_sense

you are back with another best story and im missing for the next part of it so please aplod ed son।
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