इन अंधेरी रातों में न जाने कितने रंग बिरंगे, सपने देखे। सुबह की रोशनी में। हमने मायूस चेहरे में देखें। हर दिन शाम कभी 1 जैसी नहीं होती। दिन ढलने तक बाजार को उजड़ते हुए देखे। कभी तो खुदा के सामने सजदा करता हुआ देखा? तो कभी मंदिर में। इंसान को हमने हाथ जोड़े हुए भी देखा।
आपकी। इस खूबसूरत कविता के लिए। सबसे पहले मैं आपको शुक्रियादा करना चाहूंगी। और आपकी कविता का कौशल देख के मेरे मन में सिर्फ 1 ही शब्द आता है वो है अद्भुत। आपके। शब्द। और भाव। हमें बहुत ही प्रेरित करते हैं। और ये बहुत ही प्यारी कविता अपने आप बुनी है अपने शब्दों से। और मैं आशा करती हूँ कि आप ऐसी सुंदर रचनात्मक, कविता ऐसे ही हमारे लेते आएंगे।
Urmila Verma
@urmi · 1:06
दानिश। आपकी। कविता। सुने। उजड़ते हुए। बड़ी सुन्दर। कविता। आपने। बहुत सुन्दर उसमें वर्णन किया है। आपने। कहना चाहा है? कि रात को, जो आँखें रंग बिरंग के सपने देख रही होती है। सुबह जागने? पर हकीकत का जब सामना करना पड़ता है। तो पर मायूसी छा जाती है? शाम होते होते क्या? क्या? नहीं? उजड़ने? लगता? कई बार चेहरे मायूस हो जाते हैं। और इसी दौर में गुजरते हुए कोई खुदा से सजता करता है, कोई मंदिर में हाथ जोड़ रहा है?