फर्ज़ करो, तुम्हे कोई तुम्हारे जैसा मिल जाए।
फर्स करो। फर्स करो। कि कोई तुम्हें रोज पुकारे? जिसे देखकर सारी दुनिया जल जाती है। वो तुम्हारी नजर उतारे। फर्स करो। तुम्हें। देखने के लिए। उसकी आंखें तरसें। और तुम्हारी। 1 झलक से। उसका दिन। सबर जाए। तुम्हारी हंसी से उसके सूखे, दिल पर हरियाली बरसे। और तुम्हें छू ले। अगर वो तो समा बन जाए। फर्स करो कोई। तुम्हें। रोज। सुनना? चाहे।
Prabha Iyer
@PSPV · 0:44
नमस्ते? चित्रा। शा जी। आपकी कविता। फर्श करो। मुझे बहुत अच्छा लगा। हाँ आप जिस तरह कह रहे हो फर्श करो। जो नामुमकिन है उसे भी मुमकिन बना देगा। हमारी सोच ही तो है न? सब कुछ। अगर हम पर करते रहेंगे तो क्या पता? 1 दिन हम कामयाब भी हो सकते हैं? तो फर्स करते रहो। जिंदगी में और बाकी का भगवान देखेंगे हम चेष्टा करते रहेंगे। और हमें सब कुछ अच्छा मिलता रहेगा। आपकी। कविता। बहुत अच्छी लगी। शुक्रिया।
Jyotsana Rupam
@SPane23 · 1:44
नमस्ते? जी? आपने बहुत फर्ज करो कि कोई तुम्हारे जैसा ही मिल जाए? खर्च करो। जो तुम्हारी नजर उतारे। बहुत अच्छी लाइनें। आपने लिखी हैं। और बहुत अच्छे तरीके से। हमें सुनाया है। बिल्कुल? सही कहा आपने कि अगर कोई हमारे जैसा ही अगर मिल जाए तो फर्ज करते ही मन में खुशी आ जाती है कि जो हमारे जैसा हो। जैसे कोई डिस ही चाय पसंद हो। जिंदगी में। क्या बात है? मस्त? जिंदगी हो जाए। एकदम बिंदास लोग? जिएंगे कोई हमें देखने के लिए तरसेगी।
ह**ो चित्रांश जी। मेरा नाम कदंबरी गुप्ता है। और मुझे आपकी कविता फर्ज करो। बहुत अच्छी लगी। मैं भी मानती हूं कि ऐसा प्यार वाकई बादत से आपका। आपकी। किस्मत अगर अच्छी हो। तो आपको ऐसा प्यार जरूर मिलता है। हमें विश्वास करना चाहिए कि हमें ऐसा कोई जरूरी जरूर मिलेगा नहीं। आपकी। कविता में बहुत ज्यादा गहराई थी। और शब्दों का जो आपने इस्तेमाल किया। बहुत अच्छा लगा। ऐसे लिखते रहिए। और अच्छी। अच्छी। मैं इंतजार करूंगी कि आप की अगली कविता कौन से विषय पर होगी। पर बहुत बढ़िया लिखा। आपने। बहुत ही बढ़िया।