मेंढक की टर्टर ने हमें और रस दिखलाया है। और बकरी की मैं मैंने हमें मै। मै का पाठ सिखलाया है। चिड़िया की चरचा हमें चय का। सबक सिखला गई। और बिल्ली की म्याम्याओं हमें मैं और उ सिखला गई। हिंदी भाषा को तो बाहर विदेशों ने भी अपनाया है। हरे कृष्ण, हरे राम कहकर, स्कोन, मंदिर बनाया है। हिंदी। हमारी मातृभाषा है। हिंदी में ही। बतलाइए। अपनी मात्र भाषा का खोया हुआ। सम्मान। बढ़ाए धन्यवाद जी? गुप्ता।
Deepak Pande
@Deepee · 0:10
कविता में शब्दों का सही चयन किया है और छंद का भी सही प्रयोग किया है। बहुत बढ़िया।