पिछले कुछ दिनों से मैं गाँव आया हुआ हूँ दीवाली के लिए आज शाम को यूं ही टहलने का मन किया तो गाँव की कच्ची पगडंडियों पर चल पड़ा सूरज ढलने में अभी थोड़ी देर थी लेकिन अभी से कीट पतंगों की आवाजों से जंगल चहक रहा था माँ कहती है कि कीट की आवाज सुनाई दे तो शाम का दिया जला देना चाहिए खैर मैं थोडी ही दूर चला था कि मुझे मेरा बचपन मे मिला मेरे बचपन ने मेरी आँखों में देखा और मुस्कुरा दिया फिर मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींचता हुआ वो अपने साथ ले गया थोडी ही दूर चले थे कि हम गाँव के पास वाली झील पे आ पहुँचे वही झील जहाँ मैं बचपन में दोस्तों के साथ घंटों बैठा रहता था वहीं पास के मैदान में रात होने तक हम साइकिल चलाया करते थे 1 हल्की सी मुस्कान थी मेरे चेहरे पर उस वक्त बचपन ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींचा और ले गया गांव की गलियों में दौड़ते दौड़ते हमने मेरे बचपन के दोस्तों के घर भी देखे अब वहाँ कोई नहीं रहता लेकिन मुझे आज भी याद है कैसे शाम को लुका छुपी खेलते वक्त हम उस दोस्त के घर के पीछे की गली में छुप जाया करते थे दौडते दौडते मैं और मेरा बचपन पहुँचे गाँव के बाहर जंगल के पास वाले टीले पर ये वही टीला है जहाँ हम पर पतंग उड़ाया करते थे स्कूल से वापस आके रोज जल्दी लगी होती थी कि उस टीले पर जाना है हर रविवार हम वहीं मिला करते थे अब वहाँ कोई नहीं जाता हमारे बैठने की जगह पर भी बहुत सारी झाड़ियाँ उग गई हैं वक्त का पता ही नहीं चला और शाम धीरे धीरे रात में बदलने लगी आसमान सुर्ख लाल रंग, छोड़ के धीरे धीरे राग सा काला होने लगा था मुझे अब घर जाना था मैंने अब बचपन से कहा कि मुझे अब घर जाना है मैंने उससे वादा किया कि मैं जल्दी ही फिर मिलूंगा बचपन ने मेरा हाथ और कस के पकड़ लिया वैसे तो कुछ कहा नहीं उसने पर उसकी आँखें बोलती रही शायद मुझे थोड़ी देर और रोकना चाहती थी थी वो अपने पास घर से फ़ोन भी आ रहा था माँ का कॉल था मैंने माँ से कहा कि मैं बस 5 मिनट में आ गया फोन कट किया और जैसे ही पीछे मुड़ा बचपन की तरफ तो वो वहाँ नहीं था मेरा बचपन वहाँ नहीं था।
shilpee bhalla
@Shilpi-Bhalla · 0:22
ह**ो गुड मॉर्निंग बास्कर जी यह भी कविता बहुत सुन्दर थी और इससे मैं 2 लाइनें कहना चाहूंगी ऐ मेरे प्यारे बचपन कब तेरा साथ छूट गया मैं खुद ही जान नहीं पाया पर बैठा मित्रों संग अपने दिल में तुझे जीवित पाया।