मैं कभी किसी की बातें सुनती हूं? नहीं? तो शायद वो बोलते भी होंगे? शायद वो अपग्रेड लाते भी होंगे। पर हम जब धर्म की कुछ बात आ जाती है? रिलीजन की बात आ जाती है। हम इतने भावुक हो जाते हैं? हम इतने सेंटीमेंटल? मतलब? अरब? सागर? जो है। हमारा? अरब? सागर? नहीं? क्या? यह हिंद? महासागर? इतनी? जितनी? उसमें लहरें होती है? उतनी सारी? लहरें। आ जाती है? अरे? नहीं? नहीं? नहीं? ये धर्म की बात है। हम कैसे?
Aishani Chatterjee
@Aishani · 0:55
या भक्ति की जो एसेंस है वो किसी तरह से चला जाता है। दैट? इज? डेफिनिटली। नॉरिसआरगुल? तो सभी को ध्यान रखना चाहिए कि भक्ति कभी सख्ती न बन जाए। और जिसको जैसे भी पूजा पाठ करना हो जो भी करना हो वो करें। क्योंकि मन में अगर आपके भक्ति है। तो आई थिंक दैट्स वाट रियली काउंस।