Kabir: साड़ी का मूल्य

article image placeholderInteresting Story : संत कबीर दास जी के संयम की रोचक कथा
फिर मेरी स्त्री ने अपनी मेहनत से उस कपास को बुना और सूत काता। फिर मैंने उसे रंगा और बुना इतनी मेहनत तभी सफल हो? जब इसे कोई पहनता इससे लाभ। उठाता? इसका उपयोग करता पर तुमने उसके टुकड़े टुकड़े कर? डाले रुपये से यह घाटा कैसे पूरा होगा? जुलाहे की आवाज़ में आक्रोश के स्थान पर अत्यंत दया और सौम्यता थी। लड़का शर्म से पानी पानी हो गया। उसकी आँखें भर आईं और वे जुलाहे के पैरों में गिर गया।

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