Vivek Shukla
@JAISHREEKRISHNA · 4:51

श्रीमद भगवतगीता अध्याय (भाग १)

तो जय श्री कृष्ण अध्याय 4। दिव्यज्ञान। इसमें जो श्लोक संख्या है वो है? फोर्टी टू 42। तो शुरू करते है? हम तो भगवान बोलते हैं। मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था। सूर्य ने अपने पुत्र। वैश्व मनु से कहा। और मनु ने अपने पुत्र राजा चुक से कहा। हे अर्जुन। इस प्रकार परंपरा से प्राप्त इस योग को राज। ऋषियों ने जाना? किन्तु उसके बाद वह योग बहुत साल से इस पृथ्वी पर लोक में लुप्तप्राय हो गया। हे अर्जुन? तू मेरा भक्त और प्रिय सखा है।

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Prabha Iyer
@PSPV · 1:16
नमस्ते। जी। मैं प्रभा बोल रही हूं। जय श्री कष्ण। एस। आपका। जो एक्सप्लेनेशन है। बहुत अच्छा है। तो आपने जो। श्लोक। बोला। यतायताहिधरमस्यलानेर भवति? भारत। अपयुक्तानमधर्मस्य। तदात्मानम सुजाम। परित्राणाय, साधु। नाम, विनाशाय, च। दुष्टता, धर्म, संस्थापनार्था। य। संभवामि। युगे। युगे। आपने। सही। कहा।

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