नमस्कार? मैं? उर्मिला। वर्मा। आज। 1 कविता लेकर आई हूँ। जिसका शीर्षक है हम राही। प्रस्तुत है। कविता। सुनिए। मिलते हैं कितने हम राही मिलते हैं कितने हम राही पर। 24 कदम चलते हैं? साथ। पर? 24 कदम चलते हैं? साथ? वो साथ? न दे। पाते? पूरा। वो।
Akanshya Kajol
@AKA381 · 1:12
नमस्ते? उर्मिला जी। मैंने आपकी यह कविता सुनी है। हमराही जैसे आपने इस कविता का आरंभ किया। कि मिलते हैं बहुत से हमराही पर हर कोई हमारे जीवन में अंत तक नहीं रहता। और ऐसा हो भी नहीं सकता पर वो कोई 1 ही हो सकता है जो हमारे साथ हमारे जीवन के अंत तक साथ दे। तो यह कविता बहुत ही रिलेटेबल है। जिंदगी के बारे में बताती है। और आपने जिस तरह इस पॉइंट की रचना की रिसाइटेशन किया है बहुत ही खूबसूरत है। मैं आशा करती हूँ कि आप ऐसे ही और कविता हमारे बीच में प्रस्तुत करते रहे। और ऐसी ही कविता हम आपसे और सुनना चाहेंगे। बहुत बहुत धन्यवाद।