स्त्री की आज़ादी के नाम पर आज भी कितनी अजीब सोच है। कही पर आज़ादी के नाम पर संस्कार और मर्यादा किनारे रख दी जाती है ।और कहते है हम आज़ाद है, कुछ भी कर सकते है, तुमसे कोई मतलब?पर आजादी का मतलब ये भी नही
सारा तालाब ही गंदा कहलाता है? इसलिए कुछ गलत स्त्रियों की वजह से सारी स्त्रियों पर बंदिशें लगी हुई हैं। पुरुषों को भी बहाना होता है? तुम्हें? कुछ नहीं पता है? हम सब जानते हैं। पर ऐसा भी नहीं है। ऐसे साथ पढने वाला लड़का बात कर ले? तो? जैसे कितना गलत हो गया? क्यूँ? जैसे साथ पढ़ने वाली लड़की दोस्त होती है? वैसे ही साथ पढने वाला लड़का दोस्त क्यों? नहीं हो सकता? हमारी मानसिकता ही ऐसी है? हमारी मानसिकता में ही दोष है। इस मानसिकता में सुधार करने की।
Disha Agarwal
@disha_aga05 · 1:42
नमस्ते। मैं दिशा गरवाल मुंबई से बात कर रही हूँ। मैने आज कल के समाज में जो नारियों को जरूरत है, जिस मान की उसके ऊपर 1 कविता लिखी है? तो मैं वो सुनाउंगी? ए नारी। इस पुरुष प्रधान समाज में। नारी पाने को अपना अधिकार स्वयं ही जतन से, तुमको स्वयं के लिए लड़ना होगा। तूफानों में भी तुमको अपनी राह बनाना होगा। त्याग? बंधनों को? तुमको आगे कदम बढ़ाना होगा? अपनी ममता में? छवि? छोडकर?
Shivani Jani
@ShivaniJani · 2:04
है? स्वाती? जो भी आपने बात कही है? वुमन एंपावरमेंट के लिए। इट? इज? लाइक? रेली? वेरी? इम्पोटेंट? हम हर बार देखते हैं। चाहे कोई भी चीज है? चाहे वो घर है? या फिर वो ऑफिस है? या फिर कोई और जगह है। हमेशा 1 कंपेरिजन होती है? वुमेन के बीच में? और मैन के बीच में। के। आपको यह नहीं करना चाहिए? या फिर आप? यह मत करो? क्योंकि आप 1 लड़की हो? या आपकी रेस्पोंसिबिलिटी है। ये सारी चीजें।