कलियुग में जन्मा हो हर रोज मैं स्वाभिमान से विश्वास पथ पर चलता हूँ। फरेबी पेडों के बीच से अभिमान पूर्वक गुजरता हूँ। धोके के पत्रों से अक्सर टकरा कर में गिरता हूँ। टपकते हुए अपने लहू में भी विश्वास की बूंदे ढूंढता। कलयुग में जन्मा छल कपट के फार्मूले को आज हर इंसान सादर नमन करते हैं। ईमान का मुखोटा पहनकर मौका परस्त, दौलत की खातिर पराये, क्या अपनों पर भी फरेब की खंजर छल से चलाने में पीछे नहीं रहते।

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