#TellYourStory #mystory वो जमाना जब पेजर से संपर्क होता, मोबाईल रखनेवाला कोई दासू ही होता और एटीएम का तो पूछिए ही मत…
दोस्तों अभी जो जिस तरीके से समझा रही हूँ आपको आपको लगेगा की क्या बात करेगा? मगर सोचिए कि उस समय किसी के पास भी बैंक की जो पासबुक होती है न वो सिर्फ होती थी बैंक में लाइन में लगना पड़ता था। और हम जाके अभी भी लाइन में लगना पड़ता है। मगर ए टी एम टाइप के नहीं थे। तो ए टी एम का इंटरोडक्शन उस समय हो चुका था और ए टी एम से कोई पैसा न निकाल रहा था। मगर ए टी एम है ये हमें नहीं पता था। तो हमने देखा की अंदर जा रहे हैं और पैसा निकाल के वापस आ रहे हैं। उस समय सी सी टी वी कांसेप्ट नहीं थी न ही कोई चौकीदार रखे है।
बड़ा कितना बड़ा आदमी है यह और उसका उसमें। बहुत कम लोगों को भी पता। मतलब। पता होता था कि इसको पेजर कहते हैं उसकी कोई मशीन बच गई इस तरीके से ही बोला जाता था। और उसमें 1 और चीज होती थी कि यह कि जैसे ही किसी का पेजर बचता न तो वो आस पास कहीं टेलीफोन बूथ है क्या ये देखता क्योंकि उस पर नंबर आता था उस नंबर पर कांटेक्ट करके। फिर आपको
हेलो? रोस्टिंग? होस्ट? एंड आपकी स्वेल? सुनके? बहुत मजा आया। और वो जमाना? जब हम लोग पेन और पेपर से ज्यादा पैन ड्रैस के चक्कर में थे। और सच में? यादगार है ईमेल आईडी का कांसेप्ट ही कुछ अलग था। एंड हर किसी के पास होती भी थी और नहीं भी। और पेज के जरिए ही सब कुछ होता था। सो जब भी कोई दोस्त मिलता था तो पितर चालू करना तो रिचुअल था। और जब ईमेल का चक्कर आता था तो वो भी कुछ खास ही होता था। और जैसे कि आजकल 2 हर कोई स्मार्टफोन लेकर घूमता है। बट?