नमस्कार लिस्नर्स आज मैं जो कविता बोलने जा रही हूँ उसका शीर्षक है जीने की चाहत हाँ अब खुद के लिए जीना चाहती हूँ में कुछ नया करने की चाहत मन में है मेरे पर कसमसा कर रह जाती हूँ मैं हाँ अब खुद के लिए जीना चाहती हूँ मैं जिंदगी की उलझनों में बंदी रिश्तों के मुंह में बंदी बचपन गया जवानी गई जिम्मेदारियों को में निभाती रही संघर्ष घने जिम्मेदारियां ढेर सी इर्दगिर्द बढ़ती गयी सब में उलझी स्वयं से बेखबर रही मैं उम्मीदों का चमन मुरझाता रहा फिर भी आंगन को फूलों से महकाती रही उम्मीदों का चमन मुरझाता रहा फिर भी आंगन को फूलों से महकाती रही ख्वाहिशों ख्वाबों के महल को भूल कर अपने घर की गुलिस्ता को सजाती रही हर दिल को छूने की चाह में अपने मन को अनछुआ अनदेखा करती रही मैं उम्र के इस पड़ाव में नाजुक से इस दौर में मानो उड़ने का न्यौता मिला हो मुझे उम्र के इस पड़ाव में नाजुक से इस दौर में लगता है उड़ने का न्यौता मिला है मुझे उम्मीदों का मौसम आया हो जैसे 1 खोज सी लगी है 1 जोश सा भरा मन में मन में दबी कुछ अधूरी सी फाहिशें पूरा करने की जिद मचलने लगी है जज बातों भावों को उकेरने कलम हाथ में कसमसाने लगी है कौन क्या कहेगा उल्हानो तानों की कितनी बौछारें होंगी उनसे बेखबर मैं कुछ अनकहा अंश हुआ लिखने को लेखनी उकसाने लगी है उम्र के इस पड़ाव में क्या कोई गुनाह कर रही हूँ मैं उम्र के इस पढ़ाव में खुद के लिए कुछ नहीं शायद बहुत कुछ करना चाहती हूँ मैं मन और जिंदगी के मध्य संघर्ष तो हमेशा से चलता रहा मन और जिंदगी के मध्य संघर्ष हमेशा से चलता रहा मन और जीवन के मध्य चलते इस प्रतिरोध को में तालमेल में बिठाना चाहती हूँ मुस्कुराती खिलखिलाती जीवंत सा रूप धारण करना चाहती हूँ मैं धन्यवाद
हेलो नीताजी मैंने जीने की चाहत चल सुनी मुझे बहुत अच्छी लगी मैं भी कुछ पंक्तियां बोलना चाहती हूँ जिंदगी जीने की चाहत थी मगर तीर सी अब चुप रही है जिंदगी गम के साये में भले हम आज हैं हौंसला है जीत भी है जिंदगी मानता हूँ थम गया है पल मगर चल रही है रफ्तार से जिंदगी रोककर रास्ता भले हर ठहराव दे मंजिलों के ख्वाब में जिंदगी गम के मारो का मुकद्दर है मगर 1 सिकंदर आज भी है जिंदगी श्याम के दिल में धरती राधा 1 सुहानी चाह भी है जिंदगी थैंक यू नीताजी
Ranjana Kamo
@Gamechanger · 0:39
बहुत अच्छी कविता है और कैसे आपने अपने भावों को व्यक्त किया जो आप सोच है na i think अब स्वेल कास्ट में अपनी कविताएं पढी है ये सबसे अच्छा काम आप कर रहे हैं क्योंकि इसमें आप अपने आप को एक्सप्रेस कर पा रहे हैं और इन कविताओं के माध्यम से इसे जारी रखियेगा और हमें इतनी खूबसूरत कविताएं सुनाते रहिये धन्यवाद
Swell Team
@Swell · 0:15
Prashant Kumar
@smileypkt · 1:41
हेलो नीता मैम आपने बहुत ही कमाल की 1 कविता शेयर की है और इस कविता का सबसे जो मेरा फेवरेट लाइन है कि इस कविता का जो लाइन है कि दूसरे के मन को छूने की चाह में या उस प्रोसेस में हम अपने ही मन को बिना छुए रह गए है। हमारा ही मन अनछुआ रह गया यानि हम दूसरों को प्लीज करने के चक्कर में, दूसरों को रिझाने के चक्कर में, न खुद को जान पाते हैं, न खुद को अच्छे से एक्सप्रेस कर पाते हैं जीवन में।