बेटी के हाथों के छाले देख माँ का दिल भर आया। बेटी ने मुस्कराते हुए कहा, छोड़ो न मां, आओ, आपको कुछ दिखाना है। बालों को बांधते हुए तेज कदमों से आगे बढ़ी। मानो अपनी उपलब्धियाँ दिखाना चाहती हो, देखो मां दीवारे और काज है। माँ का हाथ पकड़े उन्हें रसोई घर में ले गई। अलमारी खोलकर बोली बर्तन कितने चमक रहे हैं न? फिर नमी भरी आँखों से बोल, पड़ी, मैंने अपने हाथों की चमक मेरे मकान को दे दी। मां उसकी मुस्कान के पीछे दर्द से वाकिफ थी।