मैं नारी हूँ कपास में लिपटी सिंदूर से सजी नारी कभी गलियों में अटखेलियां करते दौड़ा करती थीं आज संस्कारी हूँ मैं नारी हूँ कभी ठहाके लगा कर हंसा करती थी दोस्तों के साथ घंटों कैफेटेरिया में बैठा करती थी आज गुणों से सुशोभित हूं मैं नारी हूँ कभी कलम ही मेरी ताकत हुआ करती थी 2 चोटी बनाए बस्ता लगाए स्कूल जाया करती थी आज वही ताकत मेरे व्यवहार में है हाँ मैं नारी हूँ जानती हूँ आप लोगों ने ये लाइनें कई बार सुनी होगी शायद समझी भी होगी और कुछ ने फैमिनिज्म कहकर इग्नोर भी की होगी पर सच तो यह है कि कभी मैं ज्वाला हूँ तो कभी उसकी बूंद कभी ताल पर थिरकती काया तो कभी सन्नाटे में बैठी हुई माया हूँ जैसी भी हूँ बस ऐसी ही हूँ मेरे लिबास से मेरी उम्र का मेरे लिबास से मेरी उम्र पर मत जाना और न ही कोई अनुमान लगाना गाल की झाइयां और शायद बालों की चांदनी भी छुपाती हूं पर सच कहूँ तो दिल से अभी भी वहीं नुक्कड़ वाले प पानी पताशे में अटकी हूँ आज आज जब बाजार से चूड़ियों की दुकान देखी तो मन वैसे ही ललचाया जैसे जब 16 साल की थी तब किया करता था नया नया शृंगार करना तब सीखा था अपने हाथों की ओर देखा 1 हाथ में घड़ी और दूसरे हाथ में ब्रेसलेट पहना था सोचा इस बेरंग कलाइयों को थोड़ा सा जा लू मैंने सारे रंगों की चूड़ियाँ खरीद ली मानो इंद्रधनुष के सभी रंग मेरी झोली में आ गिरे मैंने सारी चूड़ियां पहन ली कुछ खनका थोड़ा इतराई भी कभी टेबल पर हाथ सहलाती तो कभी घर के पर्दे सवारती उस खनक में अपनी पहली सी मुस्कान ढूंढती फिर खुद को आईने में देखा जहन में 1 आवाज गूंजी बिट्टू माँ की बिट्टू तो नहीं लग रही थी पर उससे कुछ कम भी न थी अभी भी ठहाके लगाती हूँ गपशप करती हूँ पर सारी के पल्लू में छुप जाती हूँ हूँ तो वो ही पर शायद थोड़ी बदल गई हूँ