@NEELAM
Neelam Singh
@NEELAM · 1:04

"इंसान " खुद में एक कमाल सा

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हताश? सा? कभी निराशा कभी हिम्मत की मिसाल। सा। 1 ऐसा तीर क*ान सा? पिघला सा? कभी पत्थर कभी दर्ता। मौत के खौफ से कभी लिएपता। अपने ही अंदर। 1 समसान। सा। खुद में। 1 क*ाल सा। न जानें कौन सी मिट्टी से बना हूं। मैं। 1 क*ाल हूं? मैं? हां? जी हां? इंसान हूं। मैं। कभी छोटी सी चोट भी कर देती हैं? घायल? कभी निडर। बलशाली। महान। सा। खुद में। 1 क*ाल सा। पता है? कुछ सालों का है? वास मेरा धरती पर। पर। फिर भी।

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@SPane23
Jyotsana Rupam
@SPane23 · 1:23
इंसान के जो तौर तरीके है उसको बहुत बखूबी से अपने कविता के रूप में साझा के लिखा है। मुझे बहुत पसंद आई कि इंसान खुद में 1 क*ाल सा है भी? इंसान? खुद? क*ाल? सा ही है? कभी? डरता है? वही? इंसान? समय के हिसाब से। जो नहीं सोचे होते उतने बलवान? होगी? दिखाता? तो वह। ये। बहुत बहुत अद्भुत है। क*ाल है? सही बात है। इंसान? बहुत क*ाल है।
@NEELAM
Neelam Singh
@NEELAM · 0:18

@SPane23

थैंक यू सो।
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