Khamoshiyan by Kiran "Pradeep"
बंद कर 2 सब खिड़कियां बंद कर 2 सब खिड़कियां दरवाजे सब देख ना पाए कोई गम तेरा छोड़ 2 चलना उन राहों पर जहां पांव तुम्हारे फट जाएं चीखना कहीं अकेले में जहां दर्द तुम्हारा धुल जाए आस पर जिंदा रहो काश को संग ले लो तुम आज पर जिंदा रहो काश को संग ले लो, तुम कर लो खुद से कुछ बातें तुम कर लो खुद से कुछ बातें तुम कर लो खुद से कुछ बातें तुम जिंदगी चलती भले अध्यायों में हो किन्तु ये कोई किताब नहीं जो पढ़कर खत्म हो जाए जिंदगी चलती भले अध्यायों में हो किन्तु ये कोई किताब नहीं जो पढ़ कर खत्म हो जाए नए अध्याय भले ही जुड़ जाएं पुराने अध्याय कचोटते जीवन भर तनहा ये बना जाते हैं जीवन भर तनहा ये बना जाते हैं खामोशी की कोई आवाज नहीं होती, खामोशी की कोई आवाज नहीं होती दिल टूटता है तो कोई ख्वाहिश नहीं होती चारों ओर की भीड़ में जब दिल हो जाता है अकेला चारों ओर की भीड़ में जब दिल हो जाता है अकेला अल्फाज खुद ब खुद बन जाता है सहारा अलफाज खुद ब खुद बन जाता है सहारा जिंदगी की कश्मकश आज कुछ ऐसी है जिंदगी की कश्मकश आज कुछ ऐसी है है सामने समुंदर फिर भी मन प्यासा है है सामने समंदर फिर भी मन प्यासा है है सभी अपने पर बात क्यों नहीं होती है है सभी अपने पर बात क्यों नहीं होती है रात भी ये छोटी क्यों नहीं होती है चलती जिंदगी बस चलती जाती है चलती जिंदगी बस चलती जाती है फलक से चांद, चांद से जमीन, फलक से चांद, चांद से जमीन ये कैसा बरपाया सन्नाटा है न कोई आवाज, न कोई इनसान बाहर को आया है, न कोई आवाज, न कोई इंसान बाहर को आया है बंद हो गई खिड़कियाँ सारी बंद हो गई खिड़कियाँ सारी बंद सारे दरो दरवाजे हैं हद है निगाहें तक सन्नाटे का ही साया है तू मुझसे मैं तुझ से दूर हो गई बस आँखों की खामोशी से बातें तेरी मेरी हो गई फिक्र है तेरा मैं प्यार तुझ से करती हूं फिक्र है तेरा मैं प्यार तुझसे करती हूँ सच है तेरी बेरुखी पे मरती हूं सोचती हूं तेरा होगा आखिरी अब ये सितम सोचती हूं तेरा होगा आखिरी अब ये सितम इसी उम्मीद पर अब जिंदगी मैं जीती हूं अब जिंदगी में जीती हूँ अब जिंदगी में जीती हूं मैं किरण प्रदीप आप सभी के समक्ष ये कुछ कविताएं लेकर प्रस्तुत हुई हूं आशा करती हूँ आप सभी को मेरी ये कविताएं अच्छी लगी होंगी मैं कोई पोयटेस तो नहीं लेकिन हां जब भी अकेले होती हूँ या मन में कोई भाव होते हैं तो इसी तरीके से खुद से बातें करती हूँ और अपने शब्दों को, अपने अल्फाजों को कागज़ पर उतार देती हूँ नमस्कार।