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Krishna karan samvad part 3

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गुड ईवनिंग ह**ो माई स्वेल फैमिली कैसे हैं सब आई होप सब बहुत अच्छे होंगे और आज मैं अपनी इस कविता का अंतिम पार्ट लेकर आई हूँ आप सब के पास और आप सब ने बहुत एप्लीसेशन दिया मुझे अपने इस कविता को पहले 2 पार्ट्स में एंड आई होप आप सबको ये भी इसका अंतिम पार्ट भी जो उसको क*्पलीट करता है वो भी बहुत अच्छा लगेगा तो चलिए लेट्स स्टार्ट इसको शुरू करते हैं कर्ण बोला कृष्ण से मैं सहमत हूँ हर शब्द से परन्तु मैं मानव हूँ कहना आपका योगेश्वर नहीं अति संघर्ष व मानव को कुंठित कर देता है रहना चाहता है हर कोई प्रसन्न परन्तु व्यंग्य बानों से त्रस्त कब कौन प्रसन्न रहता है यदि अब मैं छोड़ दूं दुर्योधन को तो यह विश्वास घात होगा अब पांडवों से जाकर मिल जाना मित्र की पीठ पर मेरा आगात होगा मृत्यु तो निश्चित है गाना आप ईश्वर हो ये जानते हो तो क्यों फिर जाऊँ अपने कर्तव्य से शत्रु को बाई जान कर मित्र ने साथ दिया उम्र भर मुझको बाई मान कर मैं जानता हूँ कि शव दुर्योधन खड़ा है अधर्म पर पर कैसे करुँ विस्मृत उसने किया निच्छावर्थाअपना सर्वस्व इस कर्ण पर 1 विनती है कृष्णा स स्नेह स्वीकार कीजिये कर जोड़ करता हूँ प्रार्थना कृप्या स्वीकार कीजिये इस रहस्य को कृष्ण रहस्य रहने दीजिये मैं पुत्र हूं देवी कुन्ती का इस पर आवरण रहे मेरी माता सदैव 5 पुत्रों की ही माता रहे मैं जीवित रहूं या अर्जुन ये अब नियति तय करे अपनी इस मित्रता पर मैं सर्व सुवार दूंगा किन्चित इस तरह से मैं स्वयं पर से दुर्योधन का ऋण उतार दूंगा जगत को बता जाऊंगा कि मित्रता है सबसे अमूल्य धन मित्र पर कर दिए निछावर कर्ण ने सब रक्त संबंध कृष्ण भी गदगद हो उठे कर्ण के बाब जानकर कृष्ण थे स्वयं भगवान परन्तु फिर भी किया नमन तुम महान हो दानवीर हो न होगा इस जग में कोई भी तुमसा दूसरा करण तो ये थी मेरी छोटी सी श्रद्दांजली महावीर दानवीर कर्ण के करण को और मुझे उम्मीद है आप सबको अच्छी लगी होगी आप सब अपने विचार मेरे साथ जरूर बांटिएगा मुझे और अच्छा लगेगा बहुत बहुत धन्यवाद।

#sayitonswell

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