Neelam Singh
@NEELAM · 5:00
आत्मसम्मान। (कहानी) भाग 1
इसलिए जबर्दस्ती रुपये भिजवाता था वह।
Vipin Kamble
@Vipin0124 · 1:53
जी। आज के आधुनिक जीवन की यही विडंबना है कि माता पिता कष्ट करके अपने संतान को बड़ा करते हैं? उन्हें सहायक बनाते हैं कि वो अपने पैरों पर खड़े हो जाएं। और आज के जमाने की यह औलादें अपने मन के हिसाब से जीवन साथी मिलते ही अपने माता पिता के किए हुए सभी संघर्षों और बलिदानों को भूल जाते हैं। और उन्हें 1 दुख से भरा हुआ जीवन व्यतित करने के लिए मजबूर कर देते हैं। आत्म ग्लानी है? मान्य है? किंतु प्रश्न यह है कि जिस व्यक्ति ने पूरा जीवन तुम्हें दे दिया। तुम्हें खड़ा करने के लिए? आप? सिर्फ? अपनी कामवासना? भारी? आडंबर?
Neelam Singh
@NEELAM · 0:31
सबसे पहले तो आपको धन्यवाद कि आपने रिप्लाई किया है? उसके लिए दूसरा मैं कहूंगी? हाँ? आपने बिल्कुल सही कहा आज कि यही विडंबना है? और हम यह सब करते हुए यह सोचना भूल जाते हैं कि 1 समय बाद हम भी इसी कतार में खड़े होंगे। यह समय हमारे जीवन में भी आएगा। हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए। सो थैंक्यू आपने रिप्लाई किया और इस कहानी का दूसरा भाग भी जरूर सुनिएगा। और उसका रिप्लाई भी दीजिएगा।
Priya kashyap
@Priya_swell_ · 0:14
इट वाज? सीरियसली नाइस? तो हैया। मैम? मतलब। 1। कहानी जो इतनी ज्यादा खूबसूरत थी। और सुनने में इतनी ज्यादा अच्छी लगी। और सबसे बड़ी बात कि इसमें मोरैलिटी थी? यह हमें कुछ सिखा रहा है। उस लिहाज से यह बहुत ही अच्छा था।