@NEELAM
Neelam Singh
@NEELAM · 1:02

मिलिये, प्रदीप कुमार मिश्रा जी, से

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नमस्कार स्वैल साथियों आज स्वेल पर मेरे साथ है 1 मेहमान जिनका नाम है प्रदीप मृगांक अजनबी जो बहुत ही जाने माने कवि हैं, राजनीतिज्ञ है, पर्यटन सलाहकार हैं, राजनीतिक महासचिव है और बहुत ही जाने माने साहित्यकार है जिन्होंने अपने जीवन में बहुत ही गौरव सारे कार्य किये हैं जिनसे बात करना मेरे लिए गौरव और सम्मान की बात है बाकी सर आप अपने बारे में खुद ही कुछ बताएं आप ने इतने बड़े बड़े कार्य किए हैं आपका ख्यालों के परिंदे कितना फेमस प्रकाशन है तो मैं जानना चाहती हूं आप से ही आप अपने बारे में कुछ बताएं कहाँ से रहने वाले है कैसे शुरुआत हुई कृपया करके आप बताएं।

आज आज मेरे साथ है एक बहूत बड़ी हस्ती को, जो कि बहूत जाने माने साहित्यकार है कवि हैं ।राजनिति से जुड़े हैं ,महासचिव हैं .जिन्होंने देश को अपने अनगिनत योगदान दिये जिनकी जितनी सराहना किजाये उतनी कम है। # interview

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@pradeep18ajnabi

@NEELAM

वहाँ काफी अच्छा परिवर्तन है। लेकिन बहुत पिछड़ा जिला था। वहाँ के गाँवों में। रीवा की पहाडियों के पीछे का क्षेत्र था। हमें उस समय कार्य करना पड़ा था। कार्य किया था। हमने। जो बनवा वासियों के कल्याण के लिए। छोटे छोटे केंद्र बनाए थे। जिनमें कार्य चलता था। बीच के दिनों में। फिर? और लोगों ने संभाला। क्योंकि 1982 में कार्य की शुरुआत। प्रारंभिक। शुरुआत करके कुछ स्थानों का निर्माण करा के। कुछ। जो आवश्यकताएं थीं। उनको प्रारंभ करा के? स्व? वास्थ्य से?
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Neelam Singh
@NEELAM · 0:35

@pradeep18ajnabi #interview #swell

आपको नमन है आपने इतने बड़े बड़े कार्य किये हैं आपने अपने आपको कभी भी अपने आप को, अपने जीवन को कहीं 1 ठहराव नहीं दिया आप नए नए नए नए खोज करते रहे, नए नए संगठों से जुड़ते रहे हम आपको कोटी कोटी नमन करते हैं और साथ ही मैं आपसे पूछना चाहूंगी आपने किस विषय पर ज्यादा लिखा है जैसे अपना 1 वो होता है कि हाँ मैं इस विषय पर मैं ज्यादा अपने आप को सहज महसूस करता हूं या करती हूं तो उस तरीके से आपका प्रिय विषय क्या है? लेखन में।
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@Swell
Swell Team
@Swell · 0:15

Welcome to Swell!

@pradeep18ajnabi

@NEELAM

आपने पुन हमसे 1 प्रश्न किया पिछले संदर्भ में अभी हम बात कर रहे थे उसमें आगे जोड़ते हुए बताए कि ये मन की भावनाएं हैं और 1 मैं हूँ प्रकृति प्रदत्त स्वभाव है कि बैठने का मन ही नहीं होता, कोई नई चीज दिखाई दे और अपने विचारों का उसमें सामंजस्य हो तो उससे जलने लगते हैं बैंक में रहते हुए भी हमने बैंक की संस्थाओं और कर्मचारी संस्थाओं से अपना जुड़ाव बनाए रखा हम अध्यक्ष रहे एसोसिएशन के और बैंक से सेवा निवृत्त होने के बाद भी क्षेत्रीय जो वरिष्ठ नागरिक संस्था है उसके सदस्य हैं हम तो यह मानते हैं कि हम सक्रिय सदस्य हैं क्योंकि निरंतर किसी न किसी कार्य के साथ लगना पड़ता है तो ये 1 स्वाभाविक प्रवृत्ति है इसमें हम नहीं समझते कोई श्रेय की बात है कि हम ऐसा करते हैं, ऐसा करते हैं और आपने पूछा विशेष प्रश्न आपका कि लिखने की विधा कौन कौन है सी है और लिखने का कि प्रकृति किस प्रवृति किस से मिलती है हम अपने शब्दों में कहें तो यही प्रश्न था तो हमारे लिखने की विधा प्रारंभ से जब लिखना शुरू किया तब नहीं मालूम था लेकिन जब लिखा हुआ हमने कुछ वरिष्ठ लोगों को दिखाया तो पता लगा हम गीत और गजल लिखते हैं और वो भी हम दावा नहीं करते कि वो गजल है हम जो मन में आता है वो लिखते हैं और उस लिखे हुए को अगर सामने वाला गजल नाम दे तो मान लेते हैं, गजल है, गीत नाम दे तो मान लेते हैं सामने वाला यानि कोई वरिष्ठ जो साहित्य से परिचित व्यक्ति हो जहाँ तक किस बात का सवाल है क्या लिखते हैं तो हम हमारा विशेष प्रिय श् श्रंगार है और श्रंगार के 2 पक्ष होते हैं मिलन और योग और संयोग मिलन और विरह तो हम योग के लेखक ज्यादा हैं और योग के अतिरिक्त अगर कुछ लिखते हैं तो समसामयिक विषयों पर कविताएं टिप्पणी या जो चीज चारों तरफ परिवार में, घर में, व्यक्तिगत व्यवहारों में हमें ऐसी लगती है है कि ये सही नहीं है, उनके ऊपर लिख देते हैं जैसे आप अगर इजाजत दें तो हम 2 पंक्तियां आपके सामने रखते हैं 2 पंक्तियां आपके सामने रखते हैं कि जब से तुम हो गए आशना जब से तुम हो गए आशना दिल शुगुफ्ता है बेसाखता दिल शगफ्ता शगुफ्ता है बेसाखता लेकिन इसके साथ साथ अगली जो पंक्तियां मन में आती हैं वो 2 पंक्तियां और आपके सामने रखते हैं कि छोड़ देने की, भूल जाने की कोई सूरत नहीं नहीं निभाने की पर 1 आदत है कि जब से आंखों में बसा है कोई जब से आंखों में बसा है कोई याद आती नहीं जमाने की और इसमें ढूंढा नहीं करो कुछ भी मेरी आदत है, मुस्कराने की कोई लाग लपेट नहीं रखे इस तरह से गजलों की शुरुआत हुई और कुछ ठीक टिप्पणियां ऐसी भी होती हैं समसामिक पे वो लिखते हैं जैसे 2 पंक्तियां आपके सामने रखते हैं कि वार्तालाप में कभी भी आपकी बातों से आरोप न आक्षेपित हो, व्यक्तिगत मसलों से चर्चाएं न संबंधित हो और 12 शब्द ही जीवन को कर दे परिवर्तित व्यक्तिगत हित में अगर शब्द न परिभाषित हो यानि जो भी ऐसा लगता है लेकिन प्रमुख रूप से हम कहें तो हम श्रंगार में योग का लेखन करने की हमारी प्रवृत्ति रही है और बाकी समसामेकृषयों पर गीत गजल लिखते हैं ये निश्चित है और 1 विशेष बात अपनी तरफ से आपसे कहना चाहेंगे कि हम उन उन सौभाग्यशाली व्यक्ति में से है हम प्रभु को अपने ऊपर बहुत अनुकंपा प्रभु की मानते हैं कि लेखन के प्रारंभिक दिनों में अपनी रचनाओं पर टिप्पणी प्राप्त करने के लिए हमें बहुत से लोगों के साथ कुछ महान लोगों का संपर्क मिला डॉक्टर श्रद्देय परमादरणीय, डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन कुछ टिप्पणियों पर उनके तो लिखे कुछ पत्र भी हमे अभी रखे हैं श्रद्धेय नीरज जी और गजलों के सब के सम्बन्ध में किसी तरह से हम संपर्क में आए तो डॉक्टर बशीर बदर हमारे यहाँ मेरठ कॉलेज में उर्दू के प्रोफेसर हुआ करते थे और हम स्थानीय उन्हें के नाते उनके संपर्क में थे तो ये हम बहुत बड़ा अपने को सौभाग्यशाली मानते हैं हालांकि हमें इसका दंभ नहीं है हम इसको कहीं प्रचारित नहीं करते लेकिन आज मन हुआ आपके सामने संदर्भ रखने तो ये हमारा विशेष लेखन है इसके विषय में और कुछ आप अगर टिप्पणी करेंगे तो देंगे जवाब हमें जैसी हमारी लेखन है आपके सा।
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@NEELAM
Neelam Singh
@NEELAM · 0:48

@pradeep18ajnab #swell #interview #swellcast

आपके लिए जीवन क्या है? जीवन की रूप रेखा। पर। आपका नजरिया क्या है? जिससे कि मैं आप से कुछ सीख सकूं? हमारी पीढ़ी आप से कुछ सीख सके? कैसे? धैर्य रख कर जीवन को सकारात्मक बनाया जा सकता है?
@pradeep18ajnabi
चलिए 1 बार फिर आपसे मुखातिब है आपने उन्हें 1 बात सामने रखी जीवन के उतार चढ़ाव से सम्बंधित तो निश्चित रूप से जीवन तो जीवन है जीवन में उतार चढ़ाव तो होते ही है आदमी संसार में आकर जब समझदार होना शुरू करता है उससे पहले तो बड़ों के साथ सहारे चलता है जब अपने पैरों पर स्वयं चलता है तो तरह तरह की स्थितियाँ आती हैं, चलता है, ठोकर भी खाता है, अच्छा भी होता है, खराब भी होता है ये पक्की बात है तो जीवन के विषय में 14 पंक्तियों में हम आपको अपनी सोच बताते हैं कि जीवन 1 अच्छा अतितीव्र प्रवाहित सरि धारा में मौन कगरा हम उसके विषय में कुछ नहीं कर सकते जीवन तितिर प्रवाहित सरि धारा में मौन कगरा खे चल अपनी नाव हाथ ले पतवारा में मौन कगरा जैसी भी स्थिति हो, लहरें हो तो अपने पतवार से संभालिए नाव को लहरें नहीं हैं तो शांति से निकालिए अपने मन को शांत रखकर जीवन की परिस्थिति उद्वेग में कभी नहीं होना चाहिए ऐसा हमारा सोचना है और हमने अपने प्रयत्न से अपने व्यवहार में इसको रखा है और मन को हमेशा मजबूत रखना चाहिए 12 पंक्तियों में वो भी चीज कहते हैं जो हम सोचते हैं कि हम परिंदे हैं, उड़े हैं आंधियों से बेखबर ताब क* हो पर हमारा हौसला क* तर नहीं बस करम फरमा रहे तू आसमां वाले अगर ऊपर वाले की मर्जी पर यकीन रखें तो फिर कुछ नहीं हो सकता तू आसमां वाले अगर मंजिलें कोई भी हो, हमको किसी का डर नहीं नहीं मंजिलें कोई भी हो हमको किसी का डर नहीं और जन्म से जीवन से जो लोग उकताते हैं उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि इससे निजात तो मिल ही नहीं सकती जन्म दे गया शराब जिंदगी जीनी है अब आप उसमें कितना ही सिर पटकें, कोई तो अपनी हिम्मत बनाए रखे अपना मन को उस हिसाब से संतुलित रखे तो जिंदगी बहुत बढ़िया होती है दूसरी बात अपने परिवार के विषय में हमारी माताजी का संदर्भ लिया निश्चित रूप से हम अपनी माता जी के सभी होते हैं ऋणी लेकिन हम विशेष रूप से मणि है हमारी माताजी प्रधानाध्यापिक थी हमारे पिताजी अभी 2 साल पहले चली गई पिताजी अभी हमारे हैं, वो गणित के अध्यापक थे और माता जी की विशेषता ये थी जो हमें बड़े हो के समझ में आई कि वो अजमेर के मेयो कॉलेज से सन 1900 चौवन की स्नातक थी जिस जमाने में लड़के भी सुनते हैं नहीं पढते थे मिडिल से ज्यादा मेट्रिक मिडिल पढते करते थे हमारे परिवार के ननसाल के परिवार ने हमारी माता जी को उस स्तर पर पढ़ाया था भाषा और उनका सब्जेक्ट था हिंदी और इंग्लिश दोनों तो हमें बचपन से ही व्याकरण की त्रुटियों की कोई क्षमता थी ही नहीं न इंग्लिश में न हिंदी में तो दोनों भाषाओं पर हम ये तो नहीं कहेंगे कि हमारा समाज मान रूप से अधिकार है क्योंकि भाषा बहुत विस्तृत होती है लेकिन हाँ हम अपनी माँ को लेखन के क्षेत्र में विशेष रूप से और जीवन के क्षेत्र में हम नाम तो करते ही हैं इसमें कोई 2 राय नहीं इसमें कहने सुनने की कोई बात नहीं है और अपने विषय में जहाँ तक सवाल है कि हम चीजों से उलझते रहते हैं 1 और आपसे चर्चा करते हैं करने का मन हुआ कि साहित्य क्षेत्र में हमारा मन रहता है विस्तार और प्रचार का अभी आजकल हम कार्य में लगे हुए हैं हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा मिले जो नहीं मिला हुआ है उस आंदोलन के साथ जुड़े हुए हैं हम उस संगठन के उनमें से 1 संगठन के महासचिव भी हैं पर परणा हिंदी प्रचार प्रचारिणी सभा और अभी राजघाट पर हमने उसके लिए उपवास भी किया था 2 अक्टूबर को पर देश की अभी भी स्थिति ऐसी है 1 टिप्पणी जरूर हमारे मन में और ये करना चाहेंगे कि हमने उस उपवास के लिए प्रशासन से परमिशन मांगी थी और हमें वो परमिशन नहीं दी गई बहुत सी व्यक्तिगत बातचीत करने के बाद भी हमें नहीं मिली तो हमें उस उपवास को अपने स्तर पर जो हमें अच्छे स्तर पर कर सकते थे उसको संक्षिप्त करके करना पड़ा अपने सारे कार्यक्रम हमने किए लेकिन प्रशासन से अभी भी हिंदी भाषा के विषय में सहयोग उपलब्ध नहीं हुआ यह हमारे मन का कष्ट है और ये हम आपके माध्यम से रख रहे हैं हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाएगा अच्छा नहीं लगेगा लेकिन फिर भी रख रहे हैं तो ये हमारी कार्यकलाप है इस तरह से लगे रहते हैं जितना जब मन में आता है सब प्रयास कभी नहीं लिखते हैं भावनाओं से के उद्वेलन से जो आता है वो ही लिखा जाता है क्योंकि सब प्रयास कभी हम पर तो लिखा ही नहीं गया चलिए और आगे।
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@NEELAM
Neelam Singh
@NEELAM · 1:25

@pradeep18ajnabi

आज आपने बहुत अच्छी अच्छी बातों पर रौशनी डाली हमें बताई जिससे कि हम काफी कुछ सीख सकते हैं जीवन में आगे बढ़ सकते हैं उनके विचारों को लेते हुए और आपने अपनी माता जी के विषय में भी बताया अच्छा लगा और आपको तो इतनी शिक्षित माता जी मिली थी जो आपको व्याकरण की गलतियां भी बताते ती रही होंगी मां तो खैर हमेशा प्यारी होती है चाहे वह शिक्षित हो ना हो मां की ममता की तो कोई मिसाल ही नहीं होती इस पर मैने भी 1 कविता लिखी थी फिर से मुझे छुपा ले मां अपने आंचल के कोने में जो मजा तेरे दामन में है वह नहीं दुनिया के किसी कोने में तो मां के वस् में तो क्या ही कहा जाए कलम भी छोटी पड़ जाती है क* पड़ जाती है मां के विषय में लिखने में और साथ ही मैं जानना चाहूंगी आपकी हिंदी के विषय में आगे जाकर के क्या योजनाएं हैं जैसा कि आपने कहा कि हमें पहले उपवास करने से रोक दिया गया आगे भी आपके कुछ योजनाएं होंगी इसको बढ़ाने के लिए हिंदी के प्रचार को बढ़ाने के लिए और साथ ही में बताएं कि आपके आने वाले साहित्य कौन से हैं और आपका समय बहुत कीमती है इसके बाद मैं आपको परेशान नहीं करुंगी अपने प्रश्नों को विराम दुंगी तो आप जाते जाते मुझे 1 कविता भी अवश्य सुना के जाएं या गजल सुनाएं।
@pradeep18ajnabi
आपने माँ का जिक्र किया और बड़ी सुंदर पंक्तियों में अपनी भावना माँ के लिए रखी निश्चित रूप से हम तो हमारी तो 1 कविता की शुरुआत है कि माँ की ममता की भी गजब कहानी है बेटा राजा है बेट और हर बेटी रानी है माँ की ममता की भी गजब कहानी है तो माँ के लिए तो खैर बच्चे और हम उनका रन तो खैर चुका ही नहीं सकते 1 बात और बताएं उस काल में चौवन के काल में हमारी माताजी कॉलेज की एन सी सी का जो बैच था उसकी सदस्या भी थी बहुत हिम्मत के साथ वो हिम्मत वाली थी चलिए खैर अब आगे बढ़ते हैं आपने योजना के विषय में पूछा तो निश्चित रूप से हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार की हमारी योजना बरकरार है वर्ष देश भर में बहुत से स्थानों पर विभिन्न जिलों की इकाइयों में आयोजन निरंतर हो रहे हैं चल रहे हैं अभी हम महर से आए हैं बनारस का आयोजन ता किसी वजह से स्थगित हो गया अभी इंदौर में और जबलपुर में आयोजन हैं है और इनकी निरंतरता चलते हुए 10 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय हिंदी दिवस के समय फिर किसी आयोजन किसी वृहत आयोजन के साथ समाप्त होगी हमारे संगठन के हिंदी प्रेरणा हिंदी प्रचार सभा के अध्यक्ष संस्थापक अध्यक्ष नहीं हूं क्षमा करें संस्थापक माननीय संगम त्रिपाठी जी जी कभी संगम त्रपाठी वो हमारे प्रेरणा स्रोत हैं शुरुआत उन्होंने की थी उनके उस प्रारंभ किए हुए पौधे में पानी डालने का काम, सींचने का काम, उनकी पत्तियों की देखभाल करने का काम हम कर रहे हैं हमें उन्होंने दायित्व सौंपा हुआ है तो निश्चित रूप से यह कार्यक्रम हमारा तब तक जारी रहेगा जब तक भारत सरकार इस विषय में घोषणा नहीं कर देती कि हिंदी राष्ट्र की राष्ट्रभाषा है प्रयास तो प्रयासों का फल तो नजर आने लगा है अभी घोषणा मध्य प्रदेश में केंद्रीय गृहमंत्री ने चिकित्सकीय पढ़ाई की पुस्तकों की, हिंदी प्रतियां आर्पित की, लोकार्पित की और हिंदी में भाषा में पढ़ाई का प्रारंभ कर दिया ऐसे ही धीरे धीरे सारे में हो जाएगा कुछ लोग कहते हैं कि दक्षिण भारत में इसका विरोध है वहाँ केवल राजनीतिक विरोध है हम व्यक्तिगत रूप से अपना अनुभव बताते हैं हम उन क्षेत्रों में बहुत बार घूमे हैं तो वहाँ पे जो आम आदमी है जिसे हम ये कहें कि तमिल के अलावा क्या समझता है तो वो हिन्दु हिंदी समझ लेता है इंग्लिश समझने वाले तो आज भी 24 लोग ही मिलते हैं किसी जगह पर बाजार में जाए तो हिंदी समझने वाले अधिक हैं, इंग्लिश वाले नहीं इसके साथ साहित्य के प्रसार की भी हमारी योजना है आपने 1 नाम सुना होगा डॉक्टर नामवर सिंह बहुत प्रसिद्ध साहित्यकार और समालोचक थे हम उनके साथ भी कार्यरत रहे कुछ समय अंतिम समय थे उनके और उसके बाद 34 साल से हम उससे जुड़े हुए हैं और हम उत्तर प्रदेश नारायणी साहित्य अकादमी जो की डॉक्टर नामवर सिंह की स्थापित की हुई संस्था उसके अध्यक्ष हैं उत्तर प्रदेश के और साहित्य के प्रचार प्रसार में भी निरंतर लगे हुए हैं इस विषय में भी हमारे प्रयास आज है जारी है विस्तृत हो जाएगी बातचीत तो फिर कभी इस पर वार्ता करें और जहाँ तक आपने कहा लिखने के विषय में तो अब पूरी कविता सुनाने के लिए तो थोड़ा समय चाहिए लेकिन हाँ हम कुछ संक्षेप संक्षेप पाप को सुनाते हैं जैसे हमें लिखने की आदत है तो हमने 1 टिप्पणी लिखी राजनीतिक उद्वेलन के ऊपर साहितिक टिप्पणी के काले रंग पर पर क्रीम लगाकर क्या होगा तुम बतलाओ रोज नहा कर क्या होगा संविधान की कस्मे याद नहीं रखते तो राजघाट पर कसमें खाकर क्या होगा यह राजनीतिक व्यवस्था के ऊपर टिप्पणी थी इसके साथ कुछ और भी छोटी छोटी चीजें लिखते हैं जैसे चुनाव के ऊपर 1 शणिकाहमने लिखी आप सुने कि चुनाव क्या है जनता को अंधा बहरा बनाने के लिए, मोहरों का जमाव कराने के लिए जनता के ही जंतुओं द्वारा दिया हुआ भटकाव है चुनाव और अंत में 4 पंक्तियां आपके सामने रखेंगे आदमी को जीवन बनाए रहना चाहिए यह हमारी निरंतर मान्यता है कि खुद से खुद भी मिला करो बेहतर होगा खुद के साथ भी चला करो बेहतर होगा और दुनिया की तेरी मेरी उसकी सब छोड़ो खुद से बात भी करा करो बेहतर होगा और रब से लगाओ लाग रूह को आये सुकू खुद के मन की सुना करो बेहतर होगा और बैठो अजनबी सा साथ कभी तनहाई के जज्बों की गजल कहा करो बेहतर होगा जज्बों की गजल कहा करो बेहतर होगा यही हमारी है और बाकी आदमी का क्या है जाने कितने गुनाह करता है आदमी 1 गुनाह की 22 तो कभी भी प्रयास यह करना चाहिए कि हम जो करें मन और समाज के हिसाब से अच्छा करे सही करने का प्रयास करें और समर्पित रहे।
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Neelam Singh
@NEELAM · 1:10

#shwell #interviews # swell_cast_india

ढेर सारी उपलब्धियां हैं सर के नाम किन किन की हम गिनती करें ये उनका हमारे प्रति प्रेम और कृपा दृष्टि है कि वो हमारे साथ जुड़े इस मंच पर उनको 1 बार फिर से धन्यवाद।
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