Kirti Pandey
@Kirti_19 · 0:35
ये कविता मैंने चुनाव के वक़्त लिखी थी (ये कविता अवधी भाषा में है !)
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पर धानी के खातिर भैया हर केहू दौड़ लगावत बा रुपया पैसा दारू के बोतल कुल फिरी फिरी मा उड़ावत बा नैका भूसत पैंट पहिरिके घरे घरे सब जावत बा माई बाप भाई भउजाई सबका शीश नवावत बा अबकी बार का जिताई कि वोटर समझना पावदबा लेकिन 4 दिन के सत्कार का मना नहीं कर पावत बा तो ये पोएम मैंने तब लिखी थी जब इलेक्शंस आने वाले थे।
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