Vivek Shukla
@JAISHREEKRISHNA · 4:42
श्रीमद भगवतगीता अध्याय २ ( भाग २)
और बिना स्वार्थ और ईशा के कर्म, कर, कर्तव्य? समझ? कर? कर? इससे कर्म नहीं बंधता। समबुद्धि। युक्त? पुरुष पुण्य और पाप? दोनों को इसी लोक में त्याग देता है। तो अर्जुन जी कहते हैं हे केशव समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए? स्तर? बुद्धि? पुरुष के क्या लक्षण? होते है? वह कैसे बोलता है? कैसे बैठता है? कैसे चलता है? तब भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं हे अर्जुन।
Disha Agarwal
@disha_aga05 · 0:55
नमस्ते? मेरा नाम दिशा अग्रवाल है। और आपने इतनी सरलता से जो श्रीमद भागवत गीता का यह अध्याय समझाने की कोशिश की है उसके लिए मैं आपका धन्यवाद करना चाहूंगी। बिकाज 17 साल की हूँ। और मेरे घर। पर। वैसे तो हम काफी बार 1 मेरी मोम डार्ड सब भागवत गीता पड़ते रहते हैं उसके बारे में बताते रहते हैं। पर मतलब इतने कंसाइज फॉर्म में और इतनी सरलता से जो ईजी शब्दों में आपने बताने की कोशिश की है और वो मुझ तक पहुंचा भी। तो इसलिए आपका तहे दिल से धन्यवाद करना चाहूंगी?