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कुछ लिखा था। जरा गौर। फरमाइएगा। मेरा शहर मुझे पराया सा लगता है। कभी। जिन गलियों में अपना पन सा लगता था। आज वहाँ हर चेहरा जाना सा लगता है। पहले जिन दोस्तों से मुलाकात मरहम सी बन जाती थी। आज उनका ऐसी अजनबी बन के मिलना दिल को बहुत खटकता है। कभी कभी सोचता हूँ मैं बदल गया हूँ? या फिर मेरा शहर बदल गया है? क्योंकि क्योंकि यह शहर मुझे पराया सा लगता है।
हेलो? मेरा शहर। मुझे अभी? परा। ऐसा लगता है? इस वाक में? तो मुझे इतना ब्रीफकेश मिली है? इतना कुछ लगा है कि मैं आपको एक्सप्रेस ही नहीं कर सकूं? क्योंकि कभी कभी ऐसा हो जाता है कि जहां हम पले बड़े हुए हैं, 1 दिन जगह हमारे लिए कुछ अन्न जगह जैसा बन जाएगा? कभी कभी ऐसा लगता है कि क्या हमें इस जगह के बारे में? या इस मनुष्य के बारे में कुछ भी पता नहीं है? क्या? ऐसा क्या? बदलाव आ गई है? तो ये जो फीलिंग है वो बहुत स्ट्रेंज है। कभी कभी ऐसी फीलिंग से डील करना बहुत मुश्किल हो जाता है।
Sreeja V
@Wordsmith · 1:36
अनिल बहुत ही खूबसूरत लाइन है। और 1 तरह से मुझे नॉस्टालजिया महसूस हुआ। क्योंकि मैं अपने बचपन के दिन याद कर रही थी। और खास कर के। जब समर वेकेशंस होती थी तो मैं अपने नाना नानी के पास चली जाती थी। और उनका जो घर था वो मेरे बचप के जो यादें हैं बहुत ही सुंदर खूबसूरत यादें हैं। उसका। 1। अहम क्या है? अहम? पार्ट था। और बहुत सालों के बाद जब मैं वापस गयी उस घर को देखने है। वो घर हमारे हाथ से चला गया था। कोई और वहां रह रहा है? अभी।
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